जब बच्चा अपनी मां के गर्भ से बाहर आता है, तो उसके बेहतर स्वास्थ्य और दीर्घायु की कामना के लिए बहुत से संस्कार किए जाते हैं. हिंदू धर्म में बच्चों के बेहतर स्वास्थ्य के लिए कामना की जाती है. ऐसे ही जब बच्चा अपनी 6 महीने की आयु पूरी कर लेता है, तो हिंदू धर्म में अन्नप्राशन संस्कार करना बेहद ही जरूरी बताया गया है. अन्नप्राशन यानी अन्न को ग्रहण करना होता है. इस संस्कार के दौरान नवजात शिशु को पहली बार अनाज खिलाया जाता है.
धार्मिक मान्यता के अनुसार, जब नवजात शिशु 6 महीने की आयु पूर्ण कर लेता है तो वह अनाज खाने के लिए सक्षम हो जाता है. हिंदू धर्म में यह सभी संस्कार करने जरूरी बताए गए हैं. अन्नप्राशन संस्कार के करने से बच्चों की बल बुद्धि का विकास होता हैं और उनका स्वास्थ्य भी बेहतर रहता है.
जन्म के 6 महीने बाद होता है अन्नप्राशन संस्कार
अन्नप्राशन संस्कार को लेकर हमने हरिद्वार के ज्योतिषी पंडित श्रीधर शास्त्री ने लोकल 18 से बातचीत के दौरान बताया कि 16 संस्कारों के क्रम में अन्नप्राशन संस्कार नवजात शिशु के जन्म के 6 से 8 महीने बाद किया जाने वाला महत्वपूर्ण संस्कार होता है. इस दौरान नवजात शिशु को अनाज ग्रहण कराया जाता है वह बताते हैं कि बच्चे को पहले अनाज का सेवन हल्का कराया जाता है. माना जाता है कि बच्चा अनाज का सेवन करने के लिए सक्षम हो गया है.
अन्नप्राशन संस्कार क्यों करते हैं?
अन्नप्राशन संस्कार को परिवार के सभी सदस्य एक साथ इकट्ठे होकर सूक्ष्म समारोह की तरह मानते हैं, जिसमें पड़ोसियों रिश्तेदारों सगे संबंधियों को बुलाने का रिवाज होता है. वही बच्चों के बेहतर और उज्जवल भविष्य के लिए मंत्रो उच्चारण के साथ हवन यज्ञ भी कराया जाता है. कहीं-कहीं तो बच्चों को पहले अनाज का सेवन चांदी, सोने या अष्टधातु से निर्मित चम्मच से खिलाया जाता है. बच्चों को पहले अनाज का सेवन इन धातुओं से करने पर उसका शारीरिक विकास होने की धार्मिक मान्यता बताई गई है.