अमेरिका की ओर से पिछले दिनों भारत में नागरिकता संशोधन कानून लागू किए जाने पर सवाल उठाए गए थे।
इसे लेकर भारत ने सख्त आपत्ति जताई और अमेरिका को आईना दिखाते हुए कहा था कि हमें उन लोगों के लेक्चर की जरूरत नहीं है, जिन्हें विभाजन के इतिहास की जानकारी नहीं है।
इसके बाद भी अमेरिका में इस पर सवाल उठ रहे हैं। अब अमेरिका के एक सांसद बेन कार्डिन ने इस पर सवाल उठा दिया है, जो भारत के लिए चुभने वाली बात है।
बेन कार्डिन ने कहा कि जैसे-जैसे अमेरिका-भारत संबंध गहराते जा रहे हैं।
यह अहम है कि सहयोग धर्म से परे सभी के मानवाधिकारों की रक्षा के साझा मूल्यों पर आधारित हों। बेन कार्डिन उसी डेमोक्रेटिक पार्टी से ताल्लुक रखते हैं, जिससे राष्ट्रपति जो बाइडेन जुड़े हैं।
भारत सरकार ने पिछले हफ्ते नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019 लागू कर दिया था। इससे पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के ऐसे गैर-मुस्लिम प्रवासियों को भारतीय नागरिकता मिलने का रास्ता साफ हो गया है जिनके पास दस्तावेज़ नहीं हैं और वे 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत आ गए थे।
इसके साथ ही भारत सरकार ने यह भी साफ किया है कि इससे भारतीय मुस्लिमों को चिंतित होने की जरूरत नहीं, क्योंकि सीएए उनकी नागरिकता प्रभावित नहीं करता है और समुदाय का इससे कुछ लेना-देना नहीं, जिनके पास हिंदुओं के समान ही अधिकार हैं।
सीनेट की शक्तिशाली विदेश संबंध समिति के अध्यक्ष सीनेटर बेन कार्डिन ने कहा, ‘मैं विवादास्पद नागरिकता संशोधन अधिनियम को अधिसूचित करने के भारत सरकार के फैसले से चिंतित हूं। खासतौर पर मुस्लिम समुदाय पर इस कानून के संभावित प्रभाव से बहुत चिंतित हूं।
मामले को बदतर बनाने वाली बात यह है कि इसे रमज़ान के पवित्र महीने के दौरान लागू किया जा रहा है।’ उन्होंने कहा, ‘जैसे-जैसे अमेरिका-भारत संबंध गहराते जा रहे हैं, यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि हमारा सहयोग धर्म से परे सभी व्यक्तियों के मानवाधिकारों की रक्षा के हमारे साझा मूल्यों पर आधारित हो।’
पिछले हफ्ते अमेरिका के विदेश विभाग ने भी सीएए को अधिसूचित करने को लेकर चिंता जताई थी और कहा था कि धार्मिक स्वतंत्रता का सम्मान और सभी समुदायों के लिए कानून के तहत समान व्यवहार मौलिक लोकतांत्रिक सिद्धांत हैं।
भारत ने अमेरिकी विदेश विभाग द्वारा सीएए की आलोचना पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा था कि यह ‘गलत सूचना पर आधारित और अनुचित’ है।
एक अलग बयान में, ‘हिंदू पॉलिसी रिसर्च एंड एडवोकेसी कलेक्टिव (हिंदूपैक्ट)’ और ‘ग्लोबल हिंदू हैरिटेज फाउंडेशन’ ने सीएए का समर्थन किया है।
‘हिंदूपैक्ट’ के संस्थापक और सह-संयोजक अजय शाह ने कहा, ‘सीएए भारत के किसी भी नागरिक को प्रभावित नहीं करता है। इस कानून को गैर-धर्मनिरपेक्ष बताया जाना निराधार है।
भारत के पड़ोसी देशों में हिंदू अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव किया जाता है।’ उन्होंने कहा, ‘हम इस बात से निराश हैं कि अमेरिकी मूल्यों और प्रताड़ित लोगों के मानवाधिकारों के लिए खड़े होने के बजाय हमारी सरकार ने इस मानवीय प्रयास का विरोध करने का फैसला किया है।
एक अमेरिकी के तौर पर यह हमारे लिए चिंता की बात है।’