केंद्र सरकार ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में एक हलफानामे में कहा है कि पिछले 73 साल से देश में चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति तो केंद्र सरकार द्वारा ही हो रही थी, तो अब नई नियुक्ति पर विवाद क्यों किया जा रहा है।
इसके साथ ही दो चुनाव आयुक्तों की हालिया नियुक्ति का बचाव किया गया है। प्रधानमंत्री, उनकी कैबिनेट के एक सहयोगी और विपक्ष के नेता के एक पैनल ने 14 मार्च को सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारियों ज्ञानेश कुमार और सुखबीर सिंह संधू को चुनाव आयुक्त नियुक्त किया था।
केंद्र सरकार ने कहा है कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए चयन समिति में न्यायिक सदस्य की मौजूदगी चुनाव आयोग की स्वतंत्रता के लिए जरूरी नहीं है।
हाल ही में नियुक्त हुए दो आयुक्तों के चयन और नियुक्ति का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है, जिस पर कोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब मांगा था।
अपने जवाब में केंद्र सरकार ने कहा है कि मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और कार्यालय की अवधि) अधिनियम 2023 लागू होने से पहले भी यानी 1950 से 2023 तक 73 वर्षों के दौरान चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति विशेष रूप से कार्यपालिका द्वारा की जा रही थी।
बुधवार को शीर्ष अदालत के समक्ष दायर हलफनामे में केंद्र ने यह भी तर्क दिया कि इन अधिकारियों की नियुक्ति से पहले सीईसी अधिनियम के तहत उच्च स्तरीय समिति का विचार-विमर्श सिर्फ सहयोग के लिए था। इसमें कहा गया है कि हाल ही में नियुक्त दो चुनाव आयुक्तों सुखबीर सिंह संधू और ज्ञानेश कुमार की योग्यता पर कभी भी सवाल नहीं उठाया गया है।
कानून और न्याय मंत्रालय ने अपने हलफनामे में कहा है, “चुनाव आयुक्त के रूप में सेवा करने के लिए सूची में नामित किसी भी व्यक्ति की योग्यता या क्षमता पर कोई आपत्ति नहीं उठाई गई है। नियुक्त किए गए चुनाव आयुक्तों के खिलाफ भी कोई आरोप नहीं लगाए गए हैं बल्कि इनकी जगह अनर्गल बयानों के आधार पर राजनीतिक विवाद पैदा करने की कोशिश की जा रही है।”
बता दें कि 9 मार्च को अरुण गोयल के इस्तीफे के बाद चुनाव आयोग में सिर्फ मुख्य चुनाव आयुक्त ही बच गए थे। इसलिए केंद्र सरकार ने रिक्त पड़े दो पदों पर चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की है।
सरकार ने कहा कि चुनाव आयुक्त जैसे उच्च संवैधानिक पदाधिकारियों के बारे में यह माना जाना चाहिए कि वे जनहित में निष्पक्ष और अच्छे विश्वास के साथ काम करेंगे।
केंद्र सरकार ने जबाव में कहा है,“यह एक बुनियादी भ्रांति है कि किसी भी प्राधिकरण में स्वतंत्रता केवल तभी बरकरार रखी जा सकती है जब चयन समिति एक विशेष फॉर्मूलेशन वाली हो।”
हलफनामे में कहा गया,“यह संकेत देना कि न्यायिक सदस्यों के बिना चयन समितियां हमेशा पक्षपातपूर्ण होंगी, पूरी तरह से गलत है।” सरकार ने कहा कि मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति संविधान के अनुच्छेद 324(2) के तहत किया गया एक विशुद्ध कार्यकारी निर्णय है।